दो बहने काली और गोरी।।
नमस्कार बच्चों आज हम कहानी पड़ेंगे दो बहनों की एक का नाम था नैना और दूसरी सुनैना।
दोनों बहनें एक छोटे से घर में अपने आई बाबा के साथ रहती थी। नैना बहुत ही काली थी जिसके कारण उसका नाम काली पड़ गया था और सुनैना बहुत ज्यादा गोरी जिसके कारण उसका नाम गौरी पर गया था वह बहुत ही सुंदर लगती थी।
आई को गोरी पर काफी नाज़ था क्योंकि उसे लगता था कि उसके जैसी सुंदर बच्ची दुनिया में कोई हो ही नहीं सकती।
इसके कारण गौरी को अपनी सुंदरता पर काफी घमंड होने लगा और वह काली को हमेशा चिढ़ाती रहती थी ओर काली पर रोब जमाती रहती और बड़े ही रोब से घर में रहती।
इसके कारण काली काफी बार काफी उदास हो जाती और वह अपने बाबा से कहती है लेकिन बाबा व्यापार में इतना व्यस्त थे कि उन्हें कुछ सोचने की फुर्सत ही नहीं थी।
एक दिन काली काफी उदास हो गई और रोने लगी रोते-रोते वह जंगल की तरफ भागी और भागते-भागते जंगल के बीचों-बीच पहुंच गई।
तभी अचानक उसने रोने और कराहने की आवाज़ सुनी कोई बोल रहा था मुझे पानी पिला दो मुझे बहुत ज्यादा प्यास लगी है मेरी मदद करो।
काली परेशान हो गई वह इधर उधर देखने लगी कि कौन है किस को मदद चाहिए तभी उसने देखा कि एक मेहंदी की झाड़ी एकदम सुखी हुई थी। वह झाड़ी पानी के लिए तरस रही थी और कह रही थी मुझे पानी दे दो मेरी कोई मदद करो कृपया मेरी मदद करो।।
काली ने देखा पास में ही एक तालाब था वह अपने हाथों में बार-बार थोड़ा-थोड़ा पानी भरकर झाड़ी में डालने लगी।
उसने काफी मेहनत की और बार बार पानी झाड़ी को दिया अब झाड़ी तृप्त हो गई और उसने बोला धन्यवाद मैं तुम्हारी यह मदद कभी नहीं भूलूंगी इसे हमेशा याद रखूंगी।
अब काली आगे बड़ी आगे चलकर उसने देखा कि कोई कह रहा था मेरे को कुछ खाने को दे दो मुझे बड़ी ही भूख लगी है।
काली इधर-उधर देखने लगी कि कौन मदद मांग रहा है?
तभी उसकी नजर एक गाय पर पढ़ी जो कि एक पेड़ से बंधी थी वह काफी सूखी हुई थी उसे काफी भूख लगी थी और उसने कई दिनों से भोजन नहीं किया था।
काली तभी जंगल से हरा चारा इक्ट्ठा करने लगी और उसने गाय को खिलाया और साथ ही उसकी रस्सी खोल दी।
काली अब आगे बड़ी आगे चलते चलते वह काफी थक गई वह सोच रही थी कि अब वह कहां विश्राम करे उसको काफी भूख और प्यास भी लगी थी।
तभी उसकी नजर सामने एक कुटिया पर पड़ी।
उसने दरवाजा खटखटाया तभी एक बूढ़ी औरत बाहर आई और बोली आओ बेटी मैं तो तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी।
काली हैरान हो गई बूढ़ी अम्मा को कैसे पता कि मैं यहां आउंगी।
बूढी अम्मा ने काली को बिठाया और उसे कहा बेटी तुम यह क्रीम लगाकर नहाओ और तरोताजा हो जाओ पर काली शर्माने लगी बोली नहीं नहीं मां।
बूढ़ी अम्मा बोली नहीं बेटी जैसा मैं कह रही हूं एक दम वैसा ही करो तुम मेरी बेटी जैसी हो। काली ने ठीक वैसा ही किया उसने मुंह पर क्रीम लगाई और नहाकर तरोताजा हो गई।
अब उसने आईने में अपना चेहरा देखा यह क्या उसका चेहरा तो एकदम गोरा हो गया उसका रूप इतना आकर्षक हो गया की उसके जैसा और कोई भी नहीं था।
वह खुश हो गयी और खुश होते ही वह अपना चेहरा दिखाने के लिए अपने घर की तरफ दौड़ी।
दौड़ते-दौड़ते उसे एकदम प्यास लगी तो वहां पर उसको गाय मिली जिसको उसने हरा चारा खिलाया था वह गाय बोली
बेटी तुम मेरा दूध पी लो और अपने प्यास बुझा लो । उसने दूध पिया और अपनी प्यास बुझाई और वह आगे बढ़ने लगी तभी उसे मेहंदी की झाड़ी की आवाज सुनाई दी उसने कहा बेटी तुम तो बहुत ही सुंदर हो गई हो ऐसा करो मेरी मेहंदी के पत्ते ले जाओ और घर में जाकर मेहंदी लगा लेना।
उसने मेहंदी के पत्ते लिए और घर की तरफ दौड़ने लगी घर जाते ही उस ने अपना चेहरा घर में दिखाया तो सभी बहुत ही खुश हो गए।
लेकिन गौरी खुश नहीं हुई वह अचंभे में पड़ गई की काली इतनी सुंदर कैसे हो गई और वह काली की पूरी कहानी सुनने लगी।
अभी काली की कहानी पूरी हुई भी नहीं थी कि गौरी फटा-फट जंगल की तरफ दौड़ने लगी और दौड़ते-दौड़ते सीधा कुटिया पर शीघ्र ही पहुंचने का प्रयास करने लगी। उसने भी कुटिया का दरवाजा खटखटाया और बूढी अम्मा बाहर आई और बोली आ जाओ बेटी मैं तुम्हारा इंतजार कर रही थी।
वह फटाफट अंदर गई तभी अम्मा ने उसको कहा यह लो बेटी यह क्रीम लगाकर नहा धो लो और तरोताजा हो जाओ।
उसने फटाफट क्रीम लगाई और नहा धोकर तरोताजा हो गई और फटाफट आईने में अपना चेहरा देखने के लिए बढ़ी और यह क्या वैसे ही उसने आईने में अपना चेहरे को देखा वह तो बहुत ही बदसूरत हो गया था। वह यह देख कर रोने लगी तभी उसे याद आया कि उसने रास्ते में मेहंदी की झाड़ी और गाय की मदद तो की ही नहीं वह तो सीधा कुटिया की तरह दौड़ती चली जा रही थी।
वह रोने लगी और रोते रोते अपने घर की तरफ दौड़ने लगी।।
दौड़ते-दौड़ते उसे अत्यंत प्यास लगी वह गाय के पास रुक गई और दूध पी लेने का प्रयास करने लगी लेकिन गाय ने उसको लात मारकर भगा दिया।
वह अब और भी ज्यादा रोने लगी और रोते रोते आगे बढ़ने लगी आगे उसने एक मेहंदी की झाड़ी देखी।
उसने सोचा कि क्यों ना मैं भी कुछ मेहंदी के पत्ते तोड़ लूं और घर पर जाकर मेहंदी लगाऊं। लेकिन मेहंदी की झाड़ी ने उसको और भी ज्यादा कांटे चुभा दिए उसको काफी चोट लग गई वह रोते रोते घर आ गई।
अब वह समझ चुकी थी की हमें किसी का मजाक नहीं उड़ाना चाहिए और हमेशा हर एक की मदद करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
अब उसने घमंड को भी त्याग दिया था और उसकी सूरत अच्छी नहीं थी लेकिन उसकी सीरत काफी अच्छी हो गई थी जिसके कारण अभी भी सभी उस को पसंद करते थे और उसकी प्रशंसा करते थे।
अब दोनों बहनों की काफी प्रशंसा होने लगी और वह परिवार खुशी-खुशी अपने घर में रहने लगे।
शिक्षा- घमंडी का फल हमेशा नीचा होता है। हमें कभी भी घमंड नहीं करना चाहिए और हमेशा दूसरों की मदद करनी चाहिए मदद का परिणाम और फल हमेशा अच्छा ही मिलता है।
धन्यवाद अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो अपने ग्रुप में जरुर शेयर करें।।।।
No comments:
Post a Comment