विष्णु भक्त्त प्रहलाद।।।
बच्चों आओ एक कहानी पड़ते हैं एक बहुत ही नेक बालक की जिसका नाम था प्रहलाद। वो एक विष्णु भक्त्त था।
उसके पिता का नाम हिरण्यकश्यप था वो बहुत अत्याचारी था। उसे एक विशेष वरदान प्राप्त था कि उसे न कोई मनुष्य मार सकता है , न ही देव और दानव, न ही कोई जीव, न वह दिन में मरेगा, न वह रात मे, न किसी शस्त्र से उस पर वार होगा, न वह घर मे मरेगा, न ही बाहर , जिसके कारण उसने अपने आप को भगवान मान लिया था। वह अमर हो गया ऐसा उसका सोचना था।
उससे भयभीत होकर सभी मनुष्य उस से डरने लगे और उसकी पूजा करने लगे। लेकिन प्रहलाद विष्णु जी की ही पूजा करता था। उसके पिता ने उसे बहुत डराया ओर धमकाया की तू मुझे पूज मैं ही भगवान हूँ। लेकिन प्रहलाद ने उसकी बात नही मानी । वह कहता पिताजी आप भी विष्णु की पूजा करो और ये अत्याचार छोड़ दो अपने दिये हुए वरदान को लोगो के कल्याण के लिए इस्तेमाल करो।
हिरण्यकश्यप गुस्से में लाल हो गया। उसने कहा कि जो मुझे नही पूजेगा मैं उसे खत्म कर दूंगा चाहे वो मेरा पुत्र ही क्यों न हो।
उसने प्रहलाद को मारने के बहुत प्रयास किये लकिन असफल रहा। अब उसने अपनी बहन होलिका को बुलाया ओर प्रहलाद को सारे राज्य के सामने मारने की घोषणा की।
होलिका को वरदान में एक चादर प्राप्त थी। जिस से वह अग्नि में बैठ कर भी जल नही सकती थी। प्रहलाद ओर होलिका को जलती अग्नि में बिठा दिया गया दोनो को बांध दिया। लकिन पहलाद निडर होकर विष्णु जी का नाम जपता रहा ओर तेज हवा चली चादर होलिका के ऊपर से उड़ कर प्रहलाद के ऊपर आ गयी। होलिका जल गई और प्रहलाद बच गया।
इस से हिरण्यकश्यप पागल हो गया ओर प्रहलाद को कुछ दिन बाद खुद मारने के लिये आगे बढ़ा। तब विष्णु जी ने नरसिंह रूप लेकर हिरण्यकश्यप का अंत किया।
नरसिंह रूप न ही इंसान था न देव.
न राक्षस था न ही पशु
मारने का वक्त सन्ध्या का था जो न दिन ओर न ही रात का था
घर के दहलीज पर उसका वध हुआ जो न ही अंदर थी न बाहर
मारने के लिये तेज नरसिंह के नाखूनों का इस्तेमाल हुआ जो शस्त्र नही थे।
इस प्रकार विष्णु जी ने अपने भक्त की रक्षा की ओर दुष्ट हिरण्यकश्यप का वध किया।
साथ ही ये सिध्द हुआ कि बुराई कितनी भी ताकतवर हो अंत निशचित है।
तभी से होली त्योहार पर लकड़ियों को जला कर पूजा पाठ आदि कर के बुराई के अंत को हर साल celebrate किया जाता है।
वन्दे विष्णु।।।।।
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Vande vishnu..
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